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IIT बॉम्बे में दलित छात्र ने की सुसाइड, जाति पता चलते ही बदल गया था दोस्तों का व्यवहार !

07:26 PM Feb 13, 2023 IST | Sumit Chauhan
iit बॉम्बे में दलित छात्र ने की सुसाइड  जाति पता चलते ही बदल गया था दोस्तों का व्यवहार
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IIT बॉम्बे से एक बेहद बुरी खबर आई है। IIT बॉम्बे में एक दलित छात्र ने सातवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी है। दर्शन सोलंकी नाम का छात्र बीटेक फर्स्ट ईयर का छात्र था और सिर्फ साढ़े तीन महीने पहले ही उसका एडमिशन हुआ था। बीते रविवार दर्शन सोलंकी ने हॉस्टल की बिल्डिंग की सातवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। लेकिन अब सवाल उठता है कि दर्शन सोलंकी के साथ ऐसा क्या हुआ था कि उसने इतना खौफनाक कदम उठा लिया? क्या रोहित वेमुला की तरह दर्शन सोलंकी भी जातिवाद का शिकार हो गया?

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साढ़े तीन महीने में ऐसा क्या हुआ ?

रविवार को जब वो हॉस्टल से कूदने वाला था, तब वहां मौजूद कुछ छात्रों ने दौड़कर उसे बचाने की भी कोशिश की लेकिन वो उसे बचा नहीं पाए। अहमदाबाद के रहने वाले दर्शन सोलंकी ने पिछले साल नवंबर महीने में IIT बॉम्बे में एडमिशन लिया था। वो देश के सबसे बड़े तकनीकी संस्थान से एक शानदार इंजीनियर बनने की उम्मीद लेकर आया था लेकिन सिर्फ साढ़े तीन महीने में उसकी उम्मीदें चकनाचूर हो गई और उसने ज़िंदगी की जगह मौत को चुन लिया।

जातिवाद को लेकर बदनाम है IIT बॉम्बे

IIT बॉम्बे में चलने वाले आंबेडकर-पेरियार, फुले स्टडी सर्कल ने ट्विटर पर आज दर्शन सोलंकी के बारे में जानकारी साझा की थी। इसके बाद आज हमने दिन में IIT बॉम्बे के कई स्टुडेंट्स से बात की, जिसमें कई चौंकाने वाली बातें सामने आई है। IIT बॉम्बे का कैंपस पहले से इस बात को लेकर बदनाम है कि वहां दलित-आदिवासी और पिछड़े बैकग्राउंड से आने वाले छात्रों के साथ भेदभाव होता है। यहां की Teaching Faculty पर भी गंभीर आरोप लगते रहे हैं।

ऐसे में कई छात्रों ने इस बात की भी आशंका जाहिर की है कि हो सकता है दर्शन सोलंकी के साथ जातिगत भेदभाव हुआ हो।

जाति पता चलने पर रूममेट का व्यवहार बदल गया था ?

IIT बॉम्बे में जातिवादी माहौल को देखते हुए वहां के बहुजन छात्रों ने नये छात्रों की मदद के लिए एक मेंटरशिप प्रोग्राम शुरू किया था। इसी मेंटरशिप प्रोग्राम के तहत दर्शन को IIT बॉम्बे से Phd कर रहे उदय कुमार मीणा के सुपरविज़न में रखा गया था। दर्शन नवंबर महीने में ही उदय कुमार मीणा से तीन बार मिला था। दर्शन ने पढ़ाई-लिखाई को लेकर आ रही चिंता के साथ-साथ उदय को ये भी बताया था कि उसकी जाति के बारे में पता चलने के बाद उसके दोस्तों और रूममेंट के व्यवहार में अचानक काफी बदलाव आ गया था। 

उदय कुमार मीणा पास आउट हो गए इसलिए फिर से दर्शन से नहीं मिल पाए लेकिन उदय जो बता रहे हैं इससे इस बात की ओर इशारा जरूर मिलता है कि जाति भी इस केस में एक वजह हो सकती है।

2014 में भी दलित छात्र ने दी थी जान 

IIT बॉम्बे में ही साल 2014 में अनिकेत अंभोरे नाम के 22 साल के दलित छात्र ने हॉस्टल की छठी मंज़िल से कूदकर अपनी जान दे दी थी। अनिकेत बीटेक के फॉर्थ ईयर में थे। उनके परिवार ने आरोप लगाया था कि IIT बॉम्बे में उनके बेटे के साथ जातिवाद हुआ था और इसी वजह से उसने अपनी जान दे दी थी। अनिकेत की मौत के बाद A K सुरेश कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि अनिकेत को कोटे की वजह से एडमिशन मिलने के कारण कई बार गिल्टी फ़ील करवाया जाता था।  रिपोर्ट बनी, जांच हुई लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला… इसलिए IIT बॉम्बे पहले से बदनाम है। 

SC-ST छात्रों की मेंटल हेल्थ पर कोई ध्यान नहीं

बहुजन बैकग्राउंड से आने वाले छात्रों का आरोप है कि IIT बॉम्बे में SC-ST स्टूडेंट्स की समस्याओं के समाधान के लिए कोई पुख्ता कोशिश नहीं की जाती। 2017 से पहले तो कैंपस में SC-ST सेल तक नहीं था लेकिन छात्रों के लंबे संघर्ष के बाद सेल बन जाने के बाद भी दलित छात्रों की मेंटल हेल्थ और जातिवादी अनुभव को डील करने के लिए कोई प्रॉपर मैकेनिज़्म नहीं बनाया गया है। 

आरक्षण विरोधी हैं स्टूडेंट वेलनेस सेंटर की हेड काउंसलर

आंबेडकर-पेरियार, फुले स्टडी सर्कल ने अपनी स्टेटमेंट में कहा है ‘ये कोई छुपी हुई बात नहीं है कि SC-ST छात्रों को अन्य छात्रों, स्टाफ़ और फ़ैकल्टी बहुत परेशान करती है। ये संस्थान और जातिवाद के ये तरीक़े पीड़ित छात्रों पर मेंटल और साइकॉलोजिस्ट दबाव बढ़ाते हैं लेकिन इससे निपटने के लिए IITs में कोई मेकेनिज़्म नहीं है। हम लंबे समय से SC-ST छात्रों के लिए मेंटल हेल्थ मेकेनिज़्म बनाने की माँग कर रहे हैं लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। यहाँ तक कि Student Wellness Center में भी कोई SC-ST काउंसलर नहीं है।

आंबेडकर-पेरियार, फुले स्टडी सर्कल ने Student Wellness Center की Hima Chhatbar Anaredy की वो फेसबुक पोस्ट भी साझा कि है जिसमें वो जमकर आरक्षण को कोस रही हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आरक्षण विरोधी मानसिकता रखने वाले ऐसे लोग SC-ST छात्रों के साथ कैसे पेश आते होंगे?

जांच कर रही है पवई पुलिस 

हमने IIT बॉम्बे में SC-ST सेल के कॉ-कन्वीर प्रो मधु बेलुर से भी दर्शन सोलंकी के बारे में बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया। प्रिंसिपल सुभासिस चौधरी ने कहा है ‘पवई पुलिस मामले की जाँच कर रही है।’ पुलिस का कहना है कि वो सभी एंगल्स से जांच कर रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या वाकई जांच होगी या फिर अनिकेत अंभोरे की जांच कमेटी की तरह दर्शन सोलंकी का केस भी बस एक अन्य आंकड़ा बनकर रह जाएगा। 

IIT में नहीं हैं SC-ST फैकल्टी 

साल 2019 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय जो अब शिक्षा मंत्रालय हो गया है, उसकी संसद में पेश रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि देश भर की IIT में महज़ 2.81 % ही एससी–एसटी टीचर हैं। IIT में दलित-बहुजन छात्रों का ना होना, वहां जातिवादियों के हौसले बुलंद करता है। सवर्ण जिन शिक्षण संस्थानों को मां सरस्वती का दिव्य प्रांगण कहते हैं, वहां SC-ST छात्रों की मदद करने वाला कोई नहीं होता। यहां तक कि द्रौणाचार्य शिक्षक भी कई बार छात्रों को जाति के आधार पर परेशान करते हैं। पिछले दिनों IIT खड़गपुर की प्रोफेसर सीमा सिंह ऑनलाइन क्लास में SC-ST छात्रों को खुलेआम गालियां दे रही थी। 

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ अपरकास्ट

IIT को अगर आप इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की जगह  इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ अपरकास्ट भी कहेंगे तो काम चल जाएगा क्योंकि वहां सिर्फ चंद जातियों के लोगों का ही कब्ज़ा है। यहां तक वहां ज्यादातर Phd या रिसर्च कोर्स में SC-ST और OBC छात्रों को एडमिशन ही नहीं दिया जाता। यानी यहां गुरु द्रोण अपने चहेते अर्जुन को तो शिक्षा देते हैं लेकिन एकलव्य का अंगूठा काटने से नहीं हिचकिचाते। ऐसे में दर्शन सोलंकी का केस फिर से कैंपस में पसरे दलित विरोधी माहौल को सामने लाने के लिए काफी है।

जरूरी है कि इस मामले की निष्पक्षता से जांच हो और IIT बॉम्बे में वंचित वर्गों के छात्रों के हितों की रक्षा की जाए। वंचित वर्गों से आने वाले छात्रों के लिए स्पेशल काउंसलर होने चाहिए। उन्हें कोर्स से लेकर मेंटल हेल्थ तक विशेष सुविधाएं दी जानी चाहिए कैंपस में रैगिंग की तरह ही कास्टिज़्म पर भी ज़ीरो टोलेरेंस की पॉलिसी बनानी चाहिए। क्योंकि आखिर कब तक हमारे बच्चे रोहित वेमुला की तरह सांस्थानिक हत्याओं का शिकार होते रहेंगे? 

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