ओपिनियन : क्यों मीना कोटवाल को बाबा साहब के मूकनायक का नाम नहीं हड़पना चाहिए ?
मूकनायक को लेकर मीना कोटवाल और उनके पति राजा बाबू अग्निहोत्री का ये कहना कि 'हमने मूकनायक को वापस ज़िंदा किया है, लोग मूकनायक को भूल चुके थे' आंबेडकरवादियों की भावनाओं को आहत करने वाला है।
हमारे सबसे बड़े नायक बाबा साहब डॉ आंबेडकर के पहले अखबार मूकनायक को हम कभी नहीं भूले थे। जब भी आंबेडकरवादी मीडिया का जिक्र होता, लोग बाबा साहब के मूकनायक को ही याद करते क्योंकि ये सिर्फ अखबार नहीं है बल्कि बाबा साहब के विचारों का संग्रह और उनकी विरासत है जो हमें हमेशा रास्ता दिखाने का काम करेगी।
31 जनवरी 2020 को दिल्ली के डॉ आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में मूकनायक के 100 साल पूरे होने का शानदार जश्न मनाया गया था। दलित दस्तक के संपादक अशोक दास जी ने ऐसा भव्य कार्यक्रम आयोजित किया था कि हर कोई हैरान रह गया था। मैं खुद आंबेडकरवादी पत्रकारिता के इस ऐतिहासिक जश्न का गवाह रहा हूं, मीना भी हमारे साथ इस कार्यक्रम में मौजूद रही थीं।
मूकनायक को लेकर @KotwalMeena और @RajaDharaa का ये कहना कि 'हमने मूकनायक को वापस ज़िंदा किया है, लोग मूकनायक को भूल चुके थे' आंबेडकरवादियों की भावनाओं को आहत करने वाला है।
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— Sumit Chauhan (@Sumitchauhaan) May 18, 2023
मूकनायक एक ऐसा अखबार था जिसने बाबा साहब की छवि को अछूतों के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित किया। अपनी धारदार लेखनी और संपादकीय के ज़रिए बाबा साहब 'अछूतों की असली आवाज़... मूक+नायक' बनकर उभरे, इसे महज़ एक अखबार कहना बाबा साहब की कड़ी मेहनत और सपनों का अपमान होगा।
बाबा साहब के मूकनायक पर तमाम शोध हो चुके हैं। प्रो श्यौराज सिंह बेचैन से लेकर विनय कुमार वासनिक समेत कई बुद्धिजीवी मूकनायक के संपादकीय लेखों का संग्रह प्रकाशित कर चुके हैं। मूकनायक पर कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और बाबा साहब की पत्रकारिता पर भी आपको सैकड़ों लेख मिल जाएंगे।
इसलिए ये कहना कि मूकनायक को लोग भूल गए थे और बस हमारी वजह से मूकनायक को नई पहचान मिली है, ये ना सिर्फ बाबा साहब का अपमान है बल्कि उन तमाम आंबेडकरवादियों की मेहनत का भी अपमान है जो अपने-अपने प्रयासों से इस महान विरासत को संजोने का काम कर रहे थे।
क्या आपसे पहले किसी ने बहुजन मीडिया की शुरुआत नहीं की थी? क्या किसी ने मैगज़ीन, अखबार, वेबसाइट या यूट्यूब चैनल नहीं शुरू किया था? फिर क्यों किसी ने भी मूकनायक नाम को नहीं चुना? इसकी सिर्फ एक वजह है कि मूकनायक महज़ एक नाम नहीं है बल्कि बाबा साहब की अतुलनीय धरोहर है।
हम में से किसी की भी ये हिम्मत नहीं हुई कि हम बाबा साहब की विरासत पर क्लेम कर सकें, उसपर अपना ठप्पा लगाकर उसका कमर्शियल इस्तेमाल कर सकें या ये दावा करें कि देखो बाबा साहब के अखबार को सिर्फ हमारी वजह से नई पहचान मिली है। हम बाबा साहब के नाम के आगे बहुत छोटे हैं, उनकी धरोहर के सामने हम कुछ भी नहीं हैं। उस महामानव की कड़ी मेहनत पर हम अपना दावा नहीं ठोक सकते। उस धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक बिना छेड़छाड़ किए ही बचाए रखा जाना चाहिए।
आज आप गूगल पर जाइये और Mooknayak टाइप कीजिए या सर्च कीजिए who is the founder of mooknayak और आप रिज़ल्ट देखकर हैरान रह जाएंगे। गूगल बताता है कि मूकनायक एक डिजिटल मीडिया वेबसाइट है जिसकी फाउंडर मीना कोटवाल हैं। मूकनायक के संस्थापक के तौर पर बाबा साहब का नाम ही गायब हो चुका है।
इंटरनेट की दुनिया में डिजिटल फुटप्रिंट, एल्गोरिदम, टैग, Key words और सर्च रिज़ल्ट की ही अहमियत होती है। ऐसे में लोग हमेशा के लिए भूल जाएंगे कि बाबा साहब ने तमाम मुश्किलों के बाद कैसे मूकनायक जैसा क्रांतिकारी अखबार शुरू किया था। ज़रा सोचिए 10-20 साल बाद जब लोग मूकनायक को गूगल करेंगे तो उन्हें मूकनायक के फाउंडर के तौर पर किसका नाम दिखाई देगा? क्या नई पीढ़ी बाबा साहब की जगह मीना कोटवाल को ही मूकनायक का फाउंडर नहीं मान लेगी?
अब सवाल उठता है कि आप बाबा साहब डॉ आंबेडकर की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं या उनकी विरासत को अपने नाम पर रजिस्टर कर रही हैं? आप बाबा साहब का नाम बड़ा बना रही हैं या उनका नाम इतिहास से मिटा रही हैं? और क्या आपका नाम हमारे मसीहा बाबा साहब डॉ आंबेडकर के नाम से भी बड़ा हो गया?
यहां बात व्यक्तिगत लड़ाई की नहीं हैं, हम सबने मीना का हर कदम पर साथ दिया है। मीना ने बताया कि वो दलित है जबकि उसकी जाति राजस्थान में बैकवर्ड क्लास में आती है लेकिन हमने मान लिया कि वो दलित है। उसने कहा कि बीबीसी में उसके साथ जातिवाद हुआ है, हम सब उसके साथ खड़े हुए। बहुजन समाज ने उसे अपनी बेटी मानकर सिर आंखों पर बैठाया है, खूब प्यार और दुलार दिया है। ऐसे में अगर बहुजन समाज बाबा साहब के सम्मान में मीना से कोई अपील कर रहा है तो उसे मान लेनी चाहिए।
बाबा साहब के सम्मान में अगर मीना अपने चैनल का नाम बदलती हैं तो समाज उन्हें और भी प्यार देगा। लेकिन मीना ने हम असंख्य दलित-बहुजनों की जायज़ मांग को मानने की जगह हम सबको जलनखोर घोषित कर दिया। अब बहुजन समाज को खुद इसका फैसला करना चाहिए। मैं इसे बाबा साहब के अनुयायियों पर छोड़ता हूं कि वो बाबा साहब की विरासत को नष्ट होते हुए देखना चाहते हैं या फिर उसे बचाना चाहते हैं? जय भीम