यूपी में दलितों की ज़मीन पर बुरी नज़र, योगी सरकार ला रही है नया नियम !
भारत में ज़मीन सिर्फ खेती करने के लिए भूमि का एक टुकड़ा नहीं होती बल्कि जाति प्रधान भारत में ज़मीन से आपकी हैसियत भी तय होती है। यहां ज़मीन सिर्फ खेती-किसानी के लिए ही नहीं है बल्कि वंचित जातियों को गुलाम बनाए रखने का भी तरीका भी रहा है। जिन जातियों के पास ज़मीन है और जिन जातियों के पास ज़मीन नहीं हैं, उनकी सामाजिक और आर्थिक हैसियत में बहुत अंतर होता है।
भारत में ज़मीनों का जातिगत बंटवारा हुआ और कथित उच्च या प्रभावशाली जातियों के पास ज्यादातर ज़मीन है जबकि दलित जातियों के बहुत कम लोगों के पास ज़मीन है। लेकिन इन चंद दलितों की ज़मीन को छीनने की कोशिशें हमेशा भूमाफियाओं और कथित उच्च जातियों की ओर से की जाती रही हैं। लेकिन अब सरकार खुद ही दलितों की बची-खुची ज़मीन को हड़पवाने का इंतज़ाम कर रही है।
ताज़ा मामला यूपी का… यूपी की योगी सरकार नई टाउनशिप पॉलिसी लाने की तैयारी में है। इस नई पॉलिसी के हिसाब से अब यूपी में अगर किसी दलित को अपनी ज़मीन किसी गैर-दलित को बेचनी है तो उसके लिए डीएम की इजाज़त नहीं लेनी होगी। यूपी सरकार का ये फैसला दलितों के लिए तोहफा है या धोखा, इस लेख में हम इसकी पड़ताल करेंगे।
क्या है पूरी खबर ?
यूपी सरकार नई टाउनशिप नीति लेकर आ रही है। बीते मंगलवार को सीएम योगी आदित्यनाथ के सामने यूपी टाउनशिप पॉलिसी 2023 का प्रेजेंटेशन किया गया। इस नई टाउनशिप पॉलिसी में शहरीकरण को ध्यान में रखते हुए दलितों की ज़मीन की खरीद-फरोख्त पर नया नियम बनाने की बात कही गई है।
इस नये प्रस्ताव के मुताबिक दलितों की ज़मीन को किसी गैर-दलित को बेचने के लिए अब डीएम की मंजूरी नहीं चाहिए होगी। यानी अगर किसी दलित की ज़मीन को ब्राह्मण, ठाकुर या बनिया जैसी सवर्ण जाति का व्यक्ति खरीदता है तो उसे डीएम से इजाजत नहीं लेनी होगी। फिलहाल ये प्रस्ताव है लेकिन योगी सरकार इस पर कानून लाने की तैयारी में है।
फिलहाल दलितों की ज़मीन खरीदने पर क्या नियम हैं ?
अब आप ये भी समझ लीजिए कि योगी सरकार की नई टाउनशिप पॉलिसी से पहले यूपी में दलितों की ज़मीन खरीदने को लेकर क्या नियम थे। दरअसल यूपी में उत्तर प्रदेश जमींदार विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 के तहत अनुसूचित जाति के किसी भी व्यक्ति को अपनी खेती की जमीन किसी गैर अनुसूचित जाति के व्यक्ति को बेचने के लिए जिलाधिकारी से मंजूरी लेना अनिवार्य है।
फिर 2006 में यूपी रेवेन्यू कोड आया। उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 98(1) भी कहती है ‘अनुसूचित जाति के किसी भी भूस्वामी को ज़मीन हस्तांतरण करने का अधिकार नहीं होगा, उसे पहले कलेक्टर की अनुमति लेनी होगी। वो बिना अनुमति ज़मीन को नहीं बेच सकता, ना ही ज़मीन किसी को गिफ्ट में दे सकता है, ना ही ज़मीन गिरवी रख सकता है और ना ही किसी को पट्टे पर दे सकता है’
इस नियम के तहत ज़मीन बेचने के लिए कुछ शर्तें हैं। जैसे कोई दलित अपनी ज़मीन किसी गैर-दलित को तभी बेच सकता है जब या तो उसका कोई वारिस नहीं हो, ज़मीन का मालिक कहीं दूसरे राज्य या जिले में जाकर बस गया हो या फिर परिवार के किसी सदस्य को गंभीर बीमारी हो गई हो जिसके इलाज के लिए ज़मीन बेचना ज़रूरी हो। इन शर्तों के साथ ही डीएम ज़मीन बेचने की इजाज़त देते थे।
ऐसे नियम क्यों बनाए गए थे?
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसे सख्त नियम भला क्यों बनाए गए? दरअसल भारत में ज़मीन पर कब्ज़ा सिर्फ चंद प्रभावशाली जातियों के पास ही रहा है। SC-ST के ज्यादातर लोगों के पास या तो ज़मीन नहीं है या फिर बहुत थोड़ी ज़मीन है। ऐसे में बड़ी जातियों के लोग अक्सर दलितों को डरा-धमका कर उनकी ज़मीन पर या तो कब्ज़ा कर लेते थे या फिर उन्हें सस्ते दामों में ज़मीन बेचने के लिए मजबूर कर देते थे।
ये जातिवादी लोग दलितों की ज़मीन जबरन ना खरीद सकें इसलिए ऐसे सख्त नियम बनाए गए थे ताकि दलितों की ज़मीन उनके पास रहे और वो ज़मीन पर खेती-बाड़ी करके अपना गुज़ारा कर सकें। इस नियम के कारण दलितों को काफी फायदा भी हुआ। डीएम की अनुमति की शर्त के कारण भूमाफिया और जातिवादी लोग दलितों की ज़मीन पर आसानी से कब्ज़ा नहीं कर पाते थे।
यूपी में दलितों के पास कितनी ज़मीन है ?
बहुत आंदोलन करने पड़े, बहुत लोगों ने संघर्ष किया लेकिन भारत में भूमि-सुधार पूरी तरह से लागू नहीं हुआ। जो थोड़े बहुत सुधार हुए, उसके कारण यूपी में कुछ कुछ दलितों को खेती करने लायक ज़मीन मिल पाई। यूपी में बीएसपी की सरकार के दौरान भी बड़ी संख्या में दलितों को पट्टे की ज़मीन दी गई थी। पट्टे की ज़मीन का मतलब ये होता है कि सरकारी किसी खास मकसद के लिए सरकारी ज़मीन को कुछ वक्त के लिए किसी व्यक्ति को देती है लेकिन जिसे ज़मीन मिलती है, वो उसका मालिक नहीं होता, वो सिर्फ उस तय समय सीमा में उसी मकसद के लिए ज़मीन का इस्तेमाल कर सकता है, जिसके लिए उसे ज़मीन किराए पर यानी पट्टे पर दी गई है।
2011 की जनगणना के मुताबिक, यूपी में SC-ST की कुल आबादी 22 % है। इस आबादी में से लगभग 42 % SC के पास कोई ज़मीन नहीं है वहीं 35.10 ST के पास भी ज़मीन नहीं है। ये लोग या तो खेतीहर मजदूर हैं या फिर कोई और मेहनत का काम करते हैं। यानी यूपी में दलितों की करीब आधी आबादी के पास ही ज़मीन है।
अपनी ज़मीन होने के क्या फायदे होते हैं?
भारत में ज्यादातर जमीन पर खेती है और खेती इनकम का मुख्य साधन बन जाती है। अपनी खुद की ज़मीन होती है तो आप अपने लिए अनाज हो सब्ज़ियां उगा सकते हैं जिससे आपके बच्चों और महिलाओं को पौष्टिक आहार मिल सकता है और वो कुपोषण का शिकार नहीं होते। आप अगर ज़मीन के मालिक हैं तो आपको किसी और के खेत में मजदूरी करने के मजबूर नहीं होना पड़ता। ज़मीन सामंतवाद से जुड़ी है इसलिए ज़मीन का मालिकाना हक होने से आपकी सामाजिक हैसियत भी तय होती है।
ज़रूरत के समय ज़मीन आपकी संपत्ति होती है जिसे बेचकर आप अपनी जरूरत पूरी कर सकते हैं। लेकिन जब दलितों के पास ज़मीन नहीं होती को वो गरीब हो जाते हैं, उन्हें किसी और के खेत में मजदूरी करनी पड़ती है, दूसरों के खेत में मजदूरी करने के कारण दलितों महिलाओं के शोषण की संभावना भी बढ़ जाती है। इसलिए दलितों के लिए ज़मीन सिर्फ खेती करना का एक साधन ही नहीं होता बल्कि जीवन में सुधार लाने का ज़रिया भी होता है।
नये प्रस्ताव में क्या दिक्कत है ?
भारत असल में कृषिप्रधान नहीं बल्कि जातिप्रधान देश है। यहां चंद जातियों के लोगों को ये गवारा ही नहीं होता कि कोई दलित स्वाभिमान के साथ जिए। इसलिए अक्सर दलितों की ज़मीन पर जबरन कब्ज़ा कर लिया जाता है। जिन गांवों में दलितों की आबादी कम है, वहां डोमिनेंट कास्ट के लोग दलितों को अपनी ज़मीन सस्ती दरों पर बेचने के लिए भी मजबूर कर देते हैं। गरीबी और अशिक्षा के कारण बहुत से दलित कोर्ट-कचहरी के चक्कर से बचते हैं और भूमाफिया इसका फायदा उठाकर दलितों की ज़मीन औने-पौने दामों पर खरीद लेते हैं।
पुराने नियम में किसी गैर-दलित को दलित की ज़मीन खरीदने के लिए डीएम की इजाज़त लेनी पड़ती थी, इसका फायदा ये होता था कि दलितों की ज़मीन पर कब्ज़ा करना आसान नहीं होता था। लेकिन अगर नया प्रस्ताव पास होता है तो फिर इस बात की आशंका बढ़ जाएगी कि दलितों की ज़मीन पर कब्ज़ा किया जाएगा। जबरन भूमाफिया और जातिवादी गुंडे दलितों की ज़मीन हथिया सकते हैं। उन्हें परेशान करके या डरा-धमका कर उनके हस्ताक्षर करवा सकते हैं। इस नये प्रस्ताव से दलितों की ज़मीन छिनने की गुंजाइश है। इसीलिए योगी सरकार की इस नीति का विरोध हो रहा है। आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ने इस बदलाव पर योगी आदित्यनाथ को चेतावनी दी है।
हमारे पुरखों ने धरती का सीना चीरकर जमीनों को उपजाऊ बनाया लेकिन राजाओं, सामंतों ने छल-बल से इनको हड़प लिया।बाबा साहब ने आजादी के आंदोलन में जमीनों को वापस लेने का आंदोलन किया।देश की स्वतंत्र सरकार ने जमींदारी उन्मूलन करके दलितों, वंचितों के साथ न्याय करने का वादा किया था। 1/1 pic.twitter.com/c44sM28NnA
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) March 15, 2023
समाजवादी पार्टी ने योगी सरकार के इस प्रस्ताव को दलितों की ज़मीन हथियाने का षड़यंत्र करार दिया है। हालांकि हैरान करने वाली बात ये है कि जब अखिलेश यादव खुद यूपी के सीएम थे, तब 2015 में वो बिलकुल ऐसा ही प्रस्ताव विधान परिषद में लेकर आए थे लेकिन बीएसपी के जबरदस्त विरोध कारण वो प्रस्ताव पास नहीं हो पाया था।
अब दलितों की जमीन पर आसानी से भाजपाई भूमाफिया कब्जा कर सकेंगे ,दलितों को डरा धमका का उनकी जमीन सस्ते दामों पर खरीद सकेंगे
भाजपा शासित योगी सरकार दलित विरोधी है
भाजपा के नेता भू माफिया हैं
भाजपा के नेता गुंडागर्दी करके दलितों जमीनें कब्जाते हैं और उस पर बिल्डिंग खड़ी करते हैं👇 pic.twitter.com/7nf1ErXpSu
— SamajwadiPartyMediaCell (@MediaCellSP) March 15, 2023
हमने इस नई पॉलिसी पर यूपी के कुछ लोगों की राय भी जानने की कोशिश की। हमने लखनऊ की बाबा साहब डॉ आंबेडकर यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी विनय और गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्र आकाश पासवान से जाना कि वो नई पॉलिसी को लेकर क्या सोचते हैं? सभी का यही कहना है कि अगर ये नया कानून बनता है तो उनकी ज़मीन पर कब्ज़े की आशंका बढ़ जाएगी।
दलितों की ये आशंका बेवजह नहीं है।
यूपी में अक्सर दलितों की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की खबरें आती रहती हैं। मैं आपको एक किस्सा बताता हूं जिससे आपको ये खबर समझने में आसानी होगी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 1992 में अयोध्या में महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने दलितों से 21 बीघा ज़मीन खरीदी। पुराने नियम के मुताबिक कोई गैर-दलित किसी दलित की ज़मीन नहीं खरीद सकता था इसलिए ट्रस्ट ने रंगई नाम के अपने दलित कर्मचारी के नाम पर सारी ज़मीन रजिस्ट्र करवा ली। इसके 4 साल बाद इस रंगई नाम के कर्मचारी ने सारी ज़मीन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट को दान कर दी।
यानी एक दलित का इस्तेमाल करते हुए दर्जनोें दलितों की ज़मीन को गैर-कानूनी ढंग से हथिया लिया गया। लेकिन अगर नई पॉलिसी बनती है तो फिर कानूनी रूप से ही दलितों की ज़मीन को जबरन हथियाया जाया सकेगा। मौजूदा योगी राज में ही खासकर सत्ताधारी पार्टी के नेताओं पर ही ज़मीन कब्ज़ाने के आरोप लगते रहे हैं।
आप बस गूगल पर जाकर सर्च कीजिए, यूपी में बीजेपी नेता पर ज़मीन कब्ज़ा करने का आरोप… और देखिए ऐसी कितनी ही खबरें आपको देखने को मिल जाएंगी जिसमें बीजेपी के नेताओं पर गरीब और वंचित जातियों के लोगों की ज़मीन जबरन कब्ज़ाने के आरोप हैं। यानी जो लोग कानून होते भी इस तरह से जबरन कब्ज़ा कर लेते हैं, वो तब क्या करेंगे जब नया कानून बन जाएगा? ये सवाल दलितों को आशंकित करता है।
योगी राज यूपी में अपनी सरकार को रामराज कहते हैं शायद इसीलिए वो ऐसा रामराज स्थापित करने की कोशिश में है जहां ना दलित पढ़ सकें, ना दलितों के पास नौैकरी हो और नही दलितों के पास खेती की ज़मीन हो। इस नये प्रस्ताव पर आप क्या सोचते हैं? अपनी राय ज़रूर दें।